प्रार्थना और आतिथ्य के सौंदर्य के साथ शुरु होगी भगवान गजानंन की आराधना

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इस वर्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 6 सितंबर की दोपहर 3 बजकर 1 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 7 सितंबर की शाम 5 बजकर 37 मिनट पर होगा. वहीं उदया तिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी 7 सितंबर शनिवार को मनाई जाएगी. 

हिंदी पंचांग के अनुसार, चतुर्थी के दिन गणपति जी की पूजा दिन में 11 बजकर 03 मिनट से कर सकते हैं यह मुहूर्त दोपहर में 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगा.

भगवान गणेश की उपासना का १० दिवसीय पर्व 07 सितंबर  से शुरु होगा।
इस दिन भगवान गणेश विराजेंगे और 17 सितंबर  यानी अनंत चतुर्दशी के दिन उन्हें विदा किया जाएगा।

स्कंद पुराण, नारद पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी भगवान गणेश की महिमा की गई है. उन्हें ज्ञान और बाधा निवारण के देवता के रूप में पूजा जाता है

गणेश चतुर्थी  पर बन रहा है ग्रहों का दुर्लभ योग

इस साल गणेश चतुर्थी पर एक ऐसा दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है, जैसा भगवान गणेश के जन्म के समय बना था.
ज्योतिषविद ने बताया कि ग्रहों का ऐसा अद्भुत संयोग आज से करीब 10 साल पहले 2012 में बना था. गणेश पुराण में बताया गया है कि गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दिन के समय हुआ था. उस दिन शुभ दिवस बुधवार था. इस साल भी कुछ ऐसा ही संयोग बन रहा है. इस साल भी भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि बुधवार को दिन के समय रहेगी.

गणेश चतुर्थी के दिन बहुत से शुभ योगों का निर्माण हो रहा है, जो इस दिन को और विशेष बना रहे हैं. 7 सितंबर के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बना रहा है. इस दिन दोपहर 12:34 से सुबह 06:03, 08 सितंबर तक ये योग रहेगा.

साथ ही रवि योग का निर्माण भी हो रहा है. रवि योग 6 सितंबर की सुबह 09:25 से लेकर 7 सितंबर को दोपहर 06:02 से 12:34 तक रहेगा.

इस दिन ब्रह्म योग का निर्माण भी हो रहा है. यह योग रात 11.15 मिनट तक रहेगा.

गणेश पूजा शुभ मुहूर्त

मध्याह्न काल गणेश पूजन मुहूर्त : पंचांग के अनुसार, इस दिन मध्याह्न काल गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 11:03  से 01:34 मध्यान  तक रहेगा।

वर्जित चंद्रदर्शन का समय :


  पंचांग के अनुसार,07 सितंबर को 09:30 प्रातः  से 08:45 रात्रि  तक चंद्रदर्शन वर्जित रहेगा। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र-दर्शन का वर्जित माना गया है। मान्यता है कि इस दिन चन्द्र दर्शन करने से मिथ्या दोष या कलंक लगता है

भगवान विघ्नविनाशक के पूजन हेतू कुछ आवश्यक नियम :

१-शास्त्रों के अनुसार गणेश प्रतिमा को 1,2,3,5,7 या 10 दिन तक स्थापित कर पूजन करना चाहिए, इसके बाद विधि पूर्वक उनका विसर्जन करें।
२-भगवान गणेश की बैठी हुई मुद्रा की प्रतिमा स्थापित करना शुभ होता है तथा प्रतिमा स्थापित करने से पहले घर में रोली या कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
३-भगवान गणेश की पीठ में दरिद्रता का वास माना जाता है, इसलिए प्रतिमा इस तरह स्थापित करें की उनकी पीठ का दर्शन न हो।
४-भगवान गणेश के पूजन में नीले और काले रंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए, उन्हें लाल और पील रंग प्रिय है। इस रंग के कपड़े पहन कर पूजन करने से गणपति बप्पा शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
५-गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन का निषेध है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रमा देखने से व्यक्ति कलंक का भागी बनता है।
गणेश भगवान को पूजन में तुलसी पत्र नहीं अर्पित करना चाहिए, लाल और पीले रंग के फूल उन्हें बेहद प्रिय हैं।
५-गणेश उत्सव के दिनों में सात्विक आहार ही करना चाहिए। इस काल में मांस, मदिरा आदि तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से गणेश पूजन सफल नहीं माना जाता है।

अंकिचन को मान दिया, इसलिए दुर्वा का चढ़ता है नैवेघ

गणपति ने अंकिचन को भी मान दिया है। इसलिए उन्हें नैवेघ में दुर्वा चढ़ाई जाती है। गणेशोत्सव जन-जन को एक सूत्र में पिरोता है। अपनी संस्कृति और धर्म का यह अप्रतिम सौंदर्य भी है। जो सबको साथ लेकर चलता है। श्रावण की पूर्णता, जब धरती पर हरियाली का सौंदर्य बिखेर रही होती है। तब मूर्तिकार के घर आंगन में गणेश प्रतिमाएं आकार लेने लगती हैं। प्रकृति के मंगल उद़्घोष के बाद मंगलमूर्ति की स्थापना का समय आता है। गणेशजी विघ्नों का समूल नाश करते हैं। कहा जाता है कि गणपति की आराधना से जीवन में सदामंगल होता है। विघ्नों के नाश एवं शुचिता व शुभता की प्राप्ति के लिए लंबोदर की उपासना विधि-विधान से करें। गणेश जी को ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है।

इसलिए है गणेश चतुर्थी का महत्व
भादो मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इसकी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था। भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था। इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसे बेहद शुभ समय माना जाता है। हर माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया जाता है और यह व्रत इन सभी में सबसे उत्तम होता है।

गणपति की पूजन की यह है विधि
गणेश जी की पूजन में वेद मंत्र का उच्चारण किया जाता है। पूजन के लिए आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठकर पूजा करें। इसके साथ समस्त पूजन सामग्री के साथ दुर्वा, सिंदूर से लेकर मोदक विशेष रुप से चढ़ाए और आराधना करें। शुभ मुर्हुत में स्थापना के बाद गणपति की आराधना चतुदर्शी तक करें।

स जयति सिंधुरवदनो देवो यत्पादपंकजस्मरणम
वासरमणिरिव तमसां राशिंनाशयति विघ्नानाम ||
 
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक:
लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ||
 
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजाननः
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छ्रुणुयादपी ||
 
विद्यारंभे विवाहेच प्रवेशे निर्गमे तथा |
संग्रामे संकटे चैव विघ्नतस्य न जायते || 
 

*राघवेंद्ररविशराय गौड़*
*ज्योतिर्विद*
9926910965

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