मंदसौर।मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में 26,000 रुपये की रिश्वत लेते पकड़े गए केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष मनीष चौधरी का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। यह रिश्वत एक मेडिकल स्टोर का लाइसेंस दिलाने के एवज में मांगी गई थी। हालांकि, इस मामले में मुख्य आरोप के घेरे में ड्रग इंस्पेक्टर जयप्रकाश कुमार भी आ रहे हैं, जिन पर इस पूरी घटना का मास्टरमाइंड होने का आरोप है।
ड्रग इंस्पेक्टर की संदिग्ध भूमिका
सूत्रों के अनुसार, यह रिश्वत सीधे तौर पर ड्रग इंस्पेक्टर की मांग पर ली जा रही थी। मनीष चौधरी, जो सरकारी अधिकारी नहीं है, को कथित तौर पर ड्रग इंस्पेक्टर ने रिश्वत लेने के लिए कहा था। सवाल उठता है कि क्या ड्रग इंस्पेक्टर इस भ्रष्टाचार का मुख्य सूत्रधार था? अगर हां, तो क्या प्रशासन उसे सह-आरोपी बनाएगा?
केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष का बचाव या दोष?
मनीष चौधरी, जो एक निजी संगठन से जुड़े हैं, रिश्वत लेते पकड़े गए। क्या उन्होंने ड्रग इंस्पेक्टर के दबाव में यह कदम उठाया, या वे इस रैकेट का हिस्सा थे? यह जांच का मुख्य पहलू है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रशासन की परीक्षा
यह घटना न केवल एक गंभीर अपराध को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भ्रष्टाचार का जाल सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रशासन के लिए यह मामला एक परीक्षा की घड़ी है। दोषियों को सख्त सजा देने के लिए निष्पक्ष और तेज जांच की आवश्यकता है।
पिछले मामलों की समीक्षा जरूरी
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह का मामला सामने आया हो। प्रशासन को यह भी देखना होगा कि पिछले ऐसे मामलों में क्या कार्रवाई हुई और क्या वे कार्रवाई पर्याप्त थी।